राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुपालन में पीएमश्री केवि में बैगलेस डे का आयोजन

 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परियोजना नवाचार के अंतर्गत केवि बिलासपुर में दिनांक 18 फरवरी से पाँच दिवसीय बैगलेस डे कार्यक्रम चल रहा है। इसके तहत विद्यार्थियों को कार्यकुशल बनाने प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें  लोकसंगीत, क्रीड़ा एवं बढ़ाईगिरी पर पाँच दिवसीय कार्यशाला पर प्रशिक्षकों के द्वारा मार्गदर्शन दिया जा रहा है।


इस कार्यशाला का उद्देश्य विद्यार्थियों को लोकसंगीत, क्रीड़ा और बढ़ाईगिरी जैसे पारंपरिक और सांस्कृतिक तत्वों से परिचित कराना है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में सांस्कृतिक जागरूकता, शारीरिक दक्षता और पारंपरिक खेलों के प्रति रुचि विकसित करना है।


कार्यशाला का आयोजन पाँच दिनों तक किया, जिसमें प्रत्येक दिन एक विशिष्ट गतिविधि पर ध्यान केंद्रित किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ 18 फरवरी को हुआ और इस कार्यशाला में पीएमश्री केवी बिलासपुर के विद्यार्थियों ने स्थानीय विशेषज्ञों से विभिन्न कौशल सीखे।

पहले दिन का ध्यान लोकसंगीत पर था। छात्रों को छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत की विभिन्न शैलियों, जैसे कि पंथी, राऊत नाचा, और सुआ गीत एवं अन्य के बारे में प्रशिक्षक ऋषिकांत गुप्ता द्वारा जानकारी दी गई। स्थानीय कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से विद्यार्थियों को संगीत की विविधता से परिचित कराया। विद्यार्थियों ने भी समूह में गायन का अभ्यास किया।

दूसरा दिन विद्यार्थियों को विभिन्न पारंपरिक खेलों, जैसे कि कबड्डी, खो-खो, और गिल्ली-डंडा, इसके साथ क्रिकेट, बैडमिंटन आदि के बारे में सिखाया गया। इन खेलों का आयोजन विद्यालय के खेल मैदान में किया गया, जिससे बच्चों को टीमवर्क और खेल भावना का अनुभव हुआ। यह प्रशिक्षण डॉ बसंत अंचल के निदेशन में हुआ।

अगले कार्यदिवस पर बढ़ाईगिरी पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस दिन विद्यार्थियों ने प्रशिक्षित बढ़ाई डेनियल मसीह के मार्गदर्शन में 'बढ़ाईगिरी' का प्रशिक्षण लिया। विद्यार्थियों को इस कला के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि लकड़ी से बनाई गई आकृतियां और हस्तशिल्प का निर्माण, सिखाया गया।

इसके पश्चात विद्यार्थियों को इन कौशलों में परिपूर्णता हेतु समूह कार्यों का आयोजन किया गया, जिसमें सभी छात्रों को लोकसंगीत और क्रीड़ा के तत्वों को मिलाकर एक साझा प्रस्तुति देने के लिए प्रेरित किया गया। इस दिन की गतिविधियाँ बच्चों की सोच, नेतृत्व क्षमता और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देने वाली थीं।

इसमें विद्यार्थियों ने सीखी गई कड़ी मेहनत के बाद प्रस्तुतियों के रूप में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम समन्वयक सौमेनदास गुप्ता ने बताया कि यह कार्यशाला विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी रही। उन्होंने न केवल सांस्कृतिक तत्वों से जुड़ाव महसूस किया, बल्कि उनके शारीरिक और मानसिक विकास में भी मदद मिली। पारंपरिक खेलों और लोकसंगीत के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ा, और उन्होंने टीम वर्क, सहयोग और पारंपरिक कला के महत्व को समझा।


प्राचार्य उमेश कुर्रे बताया कि इसके माध्यम से  विद्यार्थियों ने पारंपरिक कला, खेल और संस्कृति के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त की। इस प्रकार के आयोजन से विद्यार्थियों में अपने सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान और उत्साह उत्पन्न होता है, जो कि उनकी शारीरिक और मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।



🔷 गौतम बालबोंदरे बिलासपुर

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